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लेखन के असली 'अर्थ' को बखूब समझते हैं लेखक दीपक किंगरानी, राजनीति से परे और सकारात्मक लेखन का उदाहरण है 'फिल्म सिर्फ एक बंदा काफी है'

लेखन के असली 'अर्थ' को बखूब समझते हैं लेखक दीपक किंगरानी, राजनीति से परे और सकारात्मक लेखन का उदाहरण है 'फिल्म सिर्फ एक बंदा काफी है'

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दीपक किंगरानी एक भारतीय पटकथा लेखक, संवाद लेखक और अभिनेता हैं। उन्हें हिंदी फिल्म और टीवी इंडस्ट्री में अपने बेहतरीन काम करने के लिए जाना जाता है। हाल ही में दीपक किंगरानी अपनी जी5 पर रिलीज हुई मनोज बाजपेयी की फिल्म 'सिर्फ एक बंदा काफी है' के सधे हुए सकारात्मकता से प्रेरित लेखन और शानदार डायलॉग के लिए लिए चर्चा में आये। फ़िल्म 'सिर्फ़ एक बंदा काफ़ी है' का लेखन काफी खूबसूरती और लोगों को सोचने पर विवश कर दे इस तरह से किया गया है। फिल्म को मिल रही प्रशंसा के बाद दीपक किंगरानी का हौसला अब आसमां छू रहा है।
 
'सिर्फ़ एक बंदा काफ़ी है' एक ऐसी फिल्म है जो सत्य घटना पर आधारित है लेकिन किसी भी एक पहलू से प्रेरित नहीं हैं। चारों ओर से फिल्म को अच्छी समीक्षा मिली है। फिल्म की सबसे अच्छी जो चीज है वो है फिल्म का लेखन और फिल्म के डायलॉग और इसमें जान मनोज बाजपयी की एक्टिंग ने डाल दी। हमारे कानून की किताबों को पढ़ने के लिए एक डिग्री की आवश्यकता होती है क्योंकि अपराधों को उनके कृत्यों की प्रवृति से आंक कर सजा और नियमों को कठिन भाषा में लिखा गया है। इन धाराओं को आसान शब्दों में पिरोकर लोगों को सरलता से समझाने का काम फिल्म के लेखक और डायलॉग राइटर दीपक किंगरानी ने किया है। किंगरानी ने अपने शानदार लेखन का प्रमाण केवल 'सिर्फ़ एक बंदा काफ़ी है' से ही नहीं दिया बल्कि स्पेशल ऑप्स जैसी सुपरहिट वेब सीरीज का लेखन भी किंगरानी ने ही किया है। हम सभी जानते हैं की स्पेशल ऑप्स अब तक की सबसे सफल ओटीटी की वेब सीरीज की लिस्ट में मानी जाती हैं। जिस रोमांच और ट्विस्ट के साथ सीरीज लिखी गई, ये दर्शकों की एक बड़ी संख्या के दिल में जगह बनाने में कामयाब रही हैं। दीपक किंगरानी अपने बैलेंस और नकारात्मकता से दूर लेखन के लिए जाने जाते हैं। फिल्म सिर्फ एक बंदा काफी है इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। 

नीदरलैंड्स में छह साल तक एक‌ सॉफ़्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ फ़िल्म लेखक बनने की ख़्वाहिश लिये मुम्बई आने वाले दीपक किंगरानी की कोशिशें अब रंग ला रही हैं। जल्द ही एक लेखक के तौर पर दीपक किंगरानी की एक और महत्वाकांक्षी फ़िल्म लोगों के बीच आने वाली है। फ़िल्म का नाम है 'द ग्रेट इंडियन रेस्क्यू' जिसमें अक्षय कुमार माइनिंग इंजीनियर जसवंत सिंह गिल के मुख्य किरदार‌ में नज़र आएंगे। उल्लेखनीय है कि 80 के‌ दशक‌ के उत्तरार्ध में कोयले की एक खदान में फ़ंसे 65 मज़दूरों को बचाने के मिशन‌ पर आधारित इस फ़िल्म का ना‌म पहले 'कैप्सूल गिल' था जिसके निर्देशन‌ की बागडोर टीनू सुरेश देसाई संभाल रहे हैं। बता दें टीनू सुरेश देसाई इससे पहले अक्षय कुमार को लेकर फ़िल्म 'रुस्तम' बना चुके हैं, जिसके लिए अक्षय कुमार को श्रेष्ठ अभिनेता के रूप में राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था। ग़ौरतलब है कि‌ दीपक किंगरानी सह-लेखक विपुल रावल के साथ मिलकर‌ सच्ची घटना पर‌ आधारित इस कहानी‌ को लिखा है।
 
अपने फिल्मी सफर के बारे में स्पेशल बात करते हुए उन्होंने सिर्फ एक बंदा काफी है कि अपनी जर्नी के बारे में बात की। फिल्म को जोधपुर जेल में सजा काट रहे आराराम बापू की कहानी से प्रेरित बताया जा रहा है। ऐसे में जब लेखक से सवाल किया गया कि फिल्म के तथ्यों के लिए और लेखक के लिए कैसे प्रेरणा मिली। इस पर दीपक किंगरानी ने सरलता से कहा कि फिल्म जेल में जो बाबा सजा काट रहे हैं यह उन केस से प्रेरणा लेकर बनायी गयी है। फिल्म में आराराम बापू का कोई भी डायलॉग न रखकर फिल्म को नकारात्मकता से और राजनीति से दूर रखा गया है। फिल्म में जिस तरह से एक तरफ बाबा को मामने वाला एक बहुत बड़ा जन सैलाब था वहीं दूसरी तरफ एक लड़की। सही गलत के लिए एक लड़ाई लड़ रही हैं। ऐसे में जोधपुर और दिल्ली पुसिल का काम और अदालत की साख सबकों ध्यान में रखते हुए फिल्म का लेखन किया गया। 
 
सिर्फ एक बंदा काफी है की टीम के साथ अपने काम के अनुभव को साझा करते हुए दीपक किंगरानी ने कहा कि सभी के साथ काम करने का बहुत अच्छा अनुभव रहा। सभी ने सेट पर काफी मदद की। उन्होंने अपनी फिल्म  के ड्राफ को लेकर कहा कि जरूरी नहीं है कि जो फिल्म की कहानी को लेकर मेरे विचार है वह मनोज बाजपेयी के भी हो और  डायरेक्टर अपूर्व सिंह करकी के भी हो! इस लिए फिल्म के लेखन पर अलग अलग राय के साथ और सभी को समायोजित करते हुए लगभग 10 से ज्यादा ड्राफ तैयार करने के बात स्क्रिप्ट को फाइनल किया गया। 
   
अंडरडॉग कहलाने जाने वाले ऐसे लोगों की कहानी लिखने और उन्हें पर्दे पर पेश करने में दीपक किंगरानी की हमेशा से विशेष दिलचस्पी रही है। इस‌ संबंध में दीपक किंगरानी कहते हैं, "कलम की अपनी एक‌ ताक़त होती है. एक लेखक के तौर पर मैं हमेशा से ऐसी कहानी लोगों के सामने‌ लाने की कोशिश करता हूं, जो लोगों के जीवन में बदलाव ला सके और बड़े स्तर पर समाज को प्रेरित कर सके। यही वजह है कि मैं ऐसे साधारण लोगों द्वारा किये जाने वाले असाधारण कार्यों से जुड़ी कहानी ढूंढने और फिर अपने अंदाज़ में लिखकर उन्हें दर्शकों के सामने विचारणीय तरीके से पेश करता हूं।
 
दीपक किंगरानी का मानना‌ है कि फ़िल्म लेखन एक ऐसी विधा है, जिससे लोगों का महज़ मनोरंजन ही नहीं होता है, बल्कि इसके ज़रिए लोगों को जागरुक व ज़िम्मेदार बनाने और उन्हें प्रेरित करने का काम भी बख़ूबी किया जा सकता है। यही वजह है कि एक ज़िम्मेदार लेखक के नाते मैं आम लोगों के बीच छिपी ऐसी असाधारण कहानियां ढूंढता रहता हूं। 'सिर्फ़ एक बंदा ही काफ़ी है' और मेरी आगामी फ़िल्म 'द ग्रेट इंडियन रेस्क्यू' इसी की मिसालें हैं।"
 
आपको बता दें कि दीपक किंगरानी का जन्म 7 नवंबर को छत्तीसगढ़, भारत में हुआ था। उन्होंने रायपुर के सेंट पॉल हाई स्कूल में अध्ययन किया। उन्होंने मध्य प्रदेश के ग्वालियर में माधव इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (एमआईटीएस) से इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की है। इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद, उन्होंने अप्रैल 2004 में कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस में काम करना शुरू किया। नवंबर 2009 में, उन्होंने वहां पांच साल से अधिक समय तक काम करने के बाद नौकरी छोड़ दी। 2022 में, उन्होंने IWM डिजिटल अवार्ड्स में डिज़्नी + हॉटस्टार की क्राइम ड्रामा वेब सीरीज़ 'स्पेशल ऑप्स 1.5: द हिम्मत स्टोरी' के लिए एक वेब सीरीज़ में सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए जूरी अवार्ड जीता।
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