भारतीय सिनेमा की शुरूआत साल 1913 में मुंबई से हुई थी। फिल्म राजा हरिश्चंद्र भारत की पहली ऐसी फिल्म थी जिसे सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने पेश किया और इस स्क्रीनिंग से भारत सबसे बड़े फिल्म उद्योगों में से एक बन गया। स्वर्गीय धुंडीराज गोविंद फाल्के जिन्हें दादासाहेब फाल्के के नाम से भी जाना जाता है को आज फिल्म जगत उनके पुरस्कार के नाम से याद करती है।आपको बता दें कि, फाल्के ने अप्रैल 1911 में बॉम्बे के एक थिएटर में द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखने के बाद एक फीचर बनाने का फैसला किया था। फिल्म 1912 में वह फिल्म निर्माण तकनीक सीखने के लिए दो हफ्ते के लिए लंदन भी गए थे और वापस आकर उन्होंने फाल्के फिल्म की स्थापना कर दी थी।
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साल 1930 के दशक में फिल्म स्टूडियो सिस्टम उभरकर सामने आने लगे। फिल्म आलम आरा भारतीय फिल्म जगत की पहली बोलती फिल्म थी जिससे भारतीय फिल्म उद्योग को काफी सफलता हासिल हुई। वहीं फिल्म देवदास 1935 में आई जिसका निर्देशन पीसी बरुआ ने किया। इस फिल्म से भी बहुत अच्छी सफलता हासिल हुई थी। वहीं मराठी में बनी दामले और फतेहलाल की संत तुकाराम (1936),अंतर्राष्ट्रीय पहचान हासिल करने वाली पहली भारतीय फिल्म थी।
सामाजिक फिल्मों का निर्देशन करने वाले शांताराम ने फिल्मों के जरिए न केवल शादी बल्कि दहेज और विधवा महिलाओं की पीड़ा के विषय को लोगों के सामने पेश कर भारत में जागरूकता फैलाने का पूरा प्रयास किया। साल 1934 में हिमांशु राय की फिल्म बॉम्बे टॉकीज ने भी भारतीय सिनेमा के विकास में अच्छी खासी भूमिका निभाई। 1950 के दशक में बिमल रॉय और सत्यजीत रे जैसे फिल्म निर्माताओं ने कई और नए विषयों पर फिल्म बनाई जिसे उस समय के दौरान नजरअंदाज किया जाता था।
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मनमोहन देसाई 1970 के दशक के अधिक सफल बॉलीवुड निर्देशकों में से एक थे और कई लोग उन्हें मसाला फिल्म का जनक मानते हैं। एक्शन, रोमांस, कॉमेडी और म्यूजिक आज बॉलीवुड इंडस्ट्री पर हावी है। स्लमडॉग मिलियनेयर जैसी फिल्मों की अंतरराष्ट्रीय सफलता ने बॉलीवुड की एक पहचान पेश की है।
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