बीयर से तो अधिकतर लोग परिचित होंगे ही। अब क्या है कि पीने वालों के लिए मजेदार तो नहीं पीने वाले लोगों के लिए बीयर बुरी चीज है। लोग जो मानते हैं, वो करते हैं। मगर भाई साहब बीयर का जलवा है। तभी तो देश में इसका कारोबार फल-फूल रहा है। लोग ये भी बताते हैं कि बीयर पीना फायदेमंद होता है। पर हम ना तो आज आपको बीयर के फायदे बताएंगे और ना ही नुकसान। पर एक सवाल है कि आखिर बीयर किसी भी ब्रांड का हो पर उसकी बोतलें हरे और भूरे रंग की ही क्यों होती हैं?
अब आप कहेंगे कि अरे भाई मतलब बस बीयर को गटकने भर से है। अब उसकी बोतल का रंग काला-पीला या नीला रहे, उससे क्या लेना देना। अब नहीं मालूम है तो नहीं है। सभी को सब कुछ पता हो ऐसा जरूरी भी नहीं। पर ज्ञान बटोर लेना चाहिए, चाहे जहां से मिले ये बात खूब कही जाती है। बताया जाता है कि इंसान प्राचीन मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता के समय से ही बीयर का इस्तेमाल कर रहे हैं।
माना जाता है कि हजारों साल पहले बीयर की पहली कंपनी प्राचीन मिस्र में खुली थी। तब बीयर की पैकिंग ट्रांसपेरेंट बोतल होती थी। फिर पाया गया कि सफेद बोतल में पैक करने से बीयर का एसिड को सूर्य की किरणों से निकलने वाली अल्ट्रा वॉयलेट रेज (पराबैंगनी किरणों) खराब कर रही हैं। इसकी वजह से बीयर में बदबू आने लगती थी और लोग नहीं पीते थे।
बीयर बनाने वालों ने इस समस्या को सुलझाने के लिए एक प्लान तैयार किया। इसके तहत बीयर के लिए भूरे रंग की परत चढ़ी बोतलें चुनी गईं। ये तरकीब काम कर गई। इस रंग के बोतलों में बंद बीयर खराब नहीं हुई, क्योंकि सूरज की किरणों का असर भूरे रंग की बोतलों पर नहीं हुआ।
बीयर की बोतल पर हरा रंग चढ़ा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान। दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भूरे रंग की बोतलों का अकाल पड़ गया। इस रंग की बोतलें नहीं मिल रही थीं। ऐसे में बीयर निर्माताओं को एक ऐसा रंग चुनना था, जिस पर सूरज की किरण का बुरा असर न पड़े। तब हरे रंग को भूरे रंग की जगह चुना गया। इसके बाद से बीयर हरे रंग की बोतलों में भरकर आने लगी।
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