सावन का पवित्र महीना चल रहा है। सावन भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना माना गया है। इस पावन और पवित्र माह में भोलेनाथ की विशेष पूजा आराधना होती है और भव्य जलाभिषेक किया जाता है। सावन के महीने में भगवान शिव को उनकी हर प्रिय चीजों को अर्पित किया जाता है। मात्र जल, फूल, बेलपत्र और भांग-धतूरा से ही प्रसन्न होकर इस माह में भगवान भोलेनाथ सभी तरह की मनोकामनाओं को अवश्य ही पूरा करते हैं। इस पवित्र माह में शिव भक्त कांवड़ यात्राएं निकालकर प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव का गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं। और भी ऐसा बहुत कुछ है जो इस महीने की पवित्रता और महत्व को दर्शाता है समझाता है बतलाता है। लेकिन आज हम इस महीने के बारे में न बता कर बल्कि इस माह के इष्ट भगवान भोलेनाथ के विषय में ऐसे रोचक रहस्य बताने वाले हैं जिन्हें जानकार आप बेहद दंग रह जाएंगे।
मंदिर के बाहर शिवलिंग की स्थापना क्यों?
भगवान शिव ऐसे अकेले देव हैं जो गर्भगृह में विराजमान नहीं होते हैं। इसका एक कारण उनका बैरागी होना भी माना जाता है। ऐसे तो स्त्रियों के लिए शिवलिंग की पूजा करना वर्जित माना गया है। लेकिन शिवलिंग और मूर्ती रूप में महिलाएं भगवान शिव के दूर से दर्शन कर सकती हैं।
मान्यताओं और पुराणिक कथाओं के अनुसार, किसी भी शिव मंदिर में भगवान शिव से पहले उनके वाहन नंदी जी के दर्शन आवशयक और शुभ माने जाते हैं। शिव मंदिर में नंदी देवता का मुंह शिवलिंग की तरफ होता है। जिसके पीछे का कारण ये है कि नंदी जी की नजर अपने आराध्य की ओर हमेशा रहती है। वह हमेशा भगवान शिव को भक्ति भाव से देखते ही रहते हैं। नंदी के बारे में यह भी माना जाता है कि यह पुरुषार्थ का प्रतीक है।
शिवजी को बेलपत्र क्यों चढ़ाते हैं?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और दैत्यों के बीच समुद्र मंथन चल रहा था तभी उसमें से विष का घड़ा भी निकला। विष के घड़े को न तो देवता और न ही दैत्य लेने को तैयार थे। तब भगवान शिव ने इस विष से सभी की रक्षा करने के लिए विषपान किया था। विष के प्रभाव से शिव जी का मस्तिष्क गर्म हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिवजी के मस्तिष्क पर जल उड़ेलना शुरू किया और बेलपत्र उनके मस्तक पर रखने शुरु किए जिससे मस्तिष्क की गर्मी कम हुई। बेल के पत्तों की तासीर भी ठंडी होती है इसलिए तभी से शिव जी को बेलपत्र चढ़ाया जाने लगा। बेलपत्र और जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव जी प्रसन्न होते हैं।
भगवान शिव को विभिन्न नामों से पुकारा और पूजा जाता है। भगवान शिव को भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है। भोलेनाथ यानी जल्दी प्रसन्न होने वाले देव। भगवान शंकर की आराधना और उनको प्रसन्न करने के लिए विशेष साम्रगी की जरूरत नहीं होती है। भगवान शिव जल, पत्तियां और तरह -तरह के कंदमूल को अर्पित करने से ही जल्द प्रसन्न हो जाते हैं।
शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों ?
शिव मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन और जल चढ़ाने के बाद लोग शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं। शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने के बारे में कहा गया है। शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा जलाधारी के आगे निकले हुए भाग तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर पूरी करें। इसे शिवलिंग की आधी परिक्रमा भी कहा जाता है।
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