राज कुंद्रा पोर्नोग्राफी केस (Raj Kundra Pornography Case) में बीते तीन दिनों में तमाम तरह के खुलासे हुए हैं। सोमवार रात को रिपु सूदन कुंद्रा यानी राज कुंद्रा को मुंबई पुलिस की क्राइम बांच ने अरेस्ट कर लिया। मंगलवार को उन्हें 23 जुलाई तक पुलिस रिमांड में भेज दिया गया। इसके बाद राज कुंद्रा के वॉट्सऐप चैट से लेकर उनके खिलाफ मॉडल्स और ऐक्ट्रेसेस के बयान, उनके दफ्तर के सर्वर से पॉर्न फिल्म वीडियोज से लेकर बैंक अकाउंट में पैसों के ट्रांजेक्शन तक कई दावे पुलिस ने किए हैं। पुलिस का कहना है कि उनके पास राज कुंद्रा के खिलाफ पक्के सबूत हैं कि वह पॉर्न फिल्में बनाते थे, उसे लंदन से दिल्ली तक में बेचते थे और स्ट्रीमिंग ऐप से लेकर वेबसाइट्स तक पर अपलोड करवाते थे। लेकिन इसी बीच राज कुंद्रा के वकीलों से लेकर गहना वशिष्ठ (Gehana Vasisth) और पूनम पांडे (Poonam Pandey) तक ने यह कहकर बचाव किया है कि राज जो फिल्में बनाते थे वह इरॉटिक (Erotic Films) हैं, पॉर्न (Porn Films) नहीं। ऐसे में दिमाग जरूर चकरा सकता है कि आखिर इन दोनों में अंतर है क्या।
पुलिस का दावा- राज कुंद्रा ही हैं मास्टरमाइंड
पुलिस ने अपनी जांच में दावा किया है कि राज कुंद्रा पॉर्न फिल्मों के रैकेट के मास्टरमाइंड हैं। उन्होंने न सिर्फ 'हॉटशॉट्स' (Hotshots App) ऐप की शुरुआत की, बल्कि कार्रवाई की भनक लगते ही 2019 में इस ऐप को अपने जीजा प्रदीप बख्शी की लंदन वाली कंपनी केनरिन को बेच भी दी। इसके बाद राज कुंद्रा मुंबई में ही अपने दफ्तर से पॉर्न फिल्मों का सारा कारोबार देखते थे। मुंबई के मड आइलैंड वाले बंगले से लेकर अलग-अलग जगहों पर इन फिल्मों की शूटिंग होती थी। इसके लिए मॉडल और ऐक्ट्रेसेस से कॉन्ट्रैक्ट करवाया जाता था, जिसमें बोल्ड सीन देने, न्यूड सीन देने, टॉपलेस सीन, स्मूच और ऐसी ही तमाम चीजों के लिए हामी भरवाई जाती थी। हालांकि, पुलिस को दिए बयान में बहुत सी ऐक्ट्रेसेस ने कहा कि उन्हें अंगेजी नहीं आती और ऐसे में कॉन्ट्रैक्ट पर उनसे धोखे से साइन करवाया जाता था और बाद में इसके आधार पर ब्लैकमेल और दबाव बनाया जाता था।
कोर्ट में कहा- ये इरॉटिक फिल्में हैं पॉर्न नहीं
तमाम आरोपों के बीच राज कुंद्रा के वकीलों ने मंगलवार को कोर्ट में तर्क दिया कि जिन फिल्मों को पॉर्न बताकर मुंबई पुलिस ने कार्रवाई की है, वह असल में इरॉटिक फिल्में हैं पॉर्न नहीं। राज कुंद्रा के वकील ने कहा, 'इन कॉन्टेंट्स को पोर्नोग्राफी के रूप में बताना सही नहीं है, क्योंकि इसमें दो लोगों के बीच इंटरकोर्स यानी सेक्स या संभोग को नहीं दिखाता है। जब तक किसी फिल्म में इंटरकोर्स नहीं दिखाया जाता है, तब तक इसे पॉर्न कहना सही नहीं है। राज के वकील ने यह भी तर्क दिया कि आज डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर किस तरह के कॉन्टेंट दिखाए जा रहे हैं यह सब जानते हैं। ये कॉन्टेंट अश्लील हैं और यही डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चलता भी है। ऐसे में उनके मुवक्किल ने भी यही कॉन्टेंट बनाया, लिहाजा इसे पॉर्न कहना गलत होगा।
गहना और पूनम भी बोलीं- ये इरॉटिका है, अंतर समझना होगा
अब जो बात राज कुंद्रा के वकीलों ने कोर्ट में कही, कमोबेश वही बात इस केस में आरोपी गहना वशिष्ठ ने भी कही है। गहना खुद पोर्नोग्राफी केस में अरेस्ट हो चुकी हैं। अभी जमानत पर रिहा हैं। गहना ने राज कुंद्रा के साथ काम किया है। उन्होंने राज कुंद्रा को सपोर्ट करते हुए कहा कि राज जिस तरह की फिल्में बना रहे थे, उन्हें पॉर्न कहना गलत है। ये इरॉटिक फिल्में थीं। गहना वशिष्ठ के बाद यही बात पूनम पांडे ने भी कही। हालांकि, उनका और राज कुंद्रा का पहले से कोर्ट में मामला चल रहा है। पूनम पांडे ने 2019 में ही राज कुंद्रा के खिलाफ धोखाधड़ी करने के बाबत बम्बई हाई कोर्ट में अर्जी डाली थी। मामला विचाराधीन है।
क्या होती हैं इरॉटिक फिल्में
इरॉटिक (Erotic) का हिंदी में मतलब है कामोत्तेजक। यानी वैसा कॉन्टेंट जिसे देखकर सेक्सुअल एक्साइटमेंट बढ़ जाए। ऐसी फिल्मों या इस तरह के कॉन्टेंट को इरॉटिका भी कहते हैं। सरल शब्दों में समझे, तो कोई भी ऐसा आर्ट जिसे देखकर सेक्सुअल एक्साइटमेंट बढ़े, उसे इरॉटिका कहते हैं। यह कोई पेंटिंग हो सकती है, कोई मूर्ति, कोई फोटोग्राफी, कोई नाटक, कोई फिल्म या फिर कोई संगीत या लिटरेचर। इसे आर्ट माना जाता है, जहां आप अपने दर्शक, पाठक की सेक्सुअल एक्साइटमेंट को अपनी कला के जरिए बढ़ाते हैं। इसमें न्यूडिटी शामिल है। लेकिन यहां सेक्सुअल इंटरकोर्स यानी संभोग या सेक्स नहीं है। सिर्फ कला से एक्साइटमेंट लेवल बढ़ाने का काम है।
फिल्मों में इरॉटिक सीन होते हैं या पॉर्न?
इसे और बेहतर ढंग से समझने के लिए हम फिल्मों के बोल्ड सीन का उदाहरण ले सकते हैं। हॉलिवुड या वेब सीरीज में ऐसे न्यूड सीन दिखाए जाते हैं, जिसे डायरेक्टर ने सेंसुअस तरीके से फिल्माया है। यानी वहां ऐक्टर्स को पूरी तरह सेक्स या इंटरकोर्स करते हुए नहीं दिखाया जाता है। इरॉटिका में एक कला है, वहां सिर्फ सेक्स की इच्छा नहीं है, खूबसूरती भी है। यानी इरॉटिक कॉन्टेंट सिर्फ हमारे सेक्सुअल एक्साइटमेंट को ही नहीं बढ़ाता, बल्कि हमें उसकी खूबसूरती को निहारने पर भी मजबूर करता है। यह हमारी इंद्रियों (सेंसेज) पर ऐसा प्रभाव छोड़ता है, जो किसी आकार या इंसान की सुंदरता की ओर भी हमारा ध्यान खींचता है।
फिर पोर्नोग्राफी या पॉर्न फिल्म क्या है
पोर्नोग्राफी, इरॉटिका से ठीक उलट है। पोर्नोग्राफी का एकमात्र मकसद दर्शक को सेक्स के लिए 'टर्न ऑन' करना है। एक पोर्नोग्राफर और एक आर्टिस्ट में फर्क यह है कि आर्टिस्ट अपनी कला से सेक्सुअल एक्साइटमेंट बढ़ाने के साथ-साथ मन और इंद्रियों पर उसकी खूबसूरती का भी प्रभाव छोड़ता है। जबकि पोर्नोग्राफी को मन और खूबसूरती के प्रभाव से कोई मतलब नहीं है। उसका सीधा मकसद से सेक्स के लिए एक्साइटमेंट बढ़ाना। पोर्नोग्राफी में सिर्फ न्यूडिटी नहीं है, वहां इंटरकोर्स भी दिखाया जाता है। यानी दो इंसान के बीच सेक्स कैसे होता है, यह भी दिखाया जाता है।
इसलिए अलग हैं इरॉटिक और पॉर्न कॉन्टेंट
रिटायर हो चुके अमेरिकी क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एफ. सेल्टजर ने साल 2011 में इस पर एक आर्टिकल लिखा था। इसमें वह लिखते हैं, 'इरॉटिका हमें यह समझने में मदद करता है कि हमें क्या एक्साइटमेंट देता है और क्या नहीं। जबकि पॉर्न फिल्में या फोटोज ऐसा कोई प्रभाव नहीं छोड़ते। वह सिर्फ तत्काल प्रभाव से सेक्स के लिए एक्साइटमेंट को बढ़ाते हैं। कोई भी किसी पॉर्न वीडियो या फोटो को बार-बार नहीं देखता, क्योंकि वह कला नहीं है। उसमें सेंसुअसनेस नहीं है। पोर्नोग्राफी सीधे तौर पर पैसा कमाने का जरिया है। इसमें कोई कला नहीं है। इसके साथ ही पॉर्न में औरत या मर्द की शारीरिक खूबसूरती को भी नहीं दिखाया जाता, उसका फोकस उन्हें एक वस्तु की तरह दिखाने पर होता है, जिसका मकसद सिर्फ तत्काल के जिए वासना यानी डिजायर को पूरा करना है।'
🔽 CLICK HERE TO DOWNLOAD 👇 🔽
Post A Comment:
0 comments: