आजाद भारत में खेलों के पहले सुपरस्टार मिल्खा सिंह का शुक्रवार (18 जून) को चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में निधन हो गया। महान धावक मिल्खा चार बार एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते थे। उन्होंने 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। धावक बनने से पहले उनका जीवन का दुखों से भरा रहा था। पाकिस्तान में 20 नवंबर, 1929 को पैदा हुए मिल्खा के 15 भाई-बहन थे। विभाजन के कारण उनके परिवार को काफी कष्ट झेलने पड़े थे।
विभाजन के दौरान उनके 7 भाई-बहन के साथ माता-पिता की मौत हो गई थी। उनका बचपन दो कमरे के घर में रहने वाले परिवार के साथ गरीबी में बीता। इसमें एक कमरा पशुओं के लिए था। मिल्खा का गांव गोविंदपुरा (मुजफ्फरगढ़ जिले) है। अब वह पश्चिमी पाकिस्तान में है। विभाजन के बाद मिल्खा के परिवार में सिर्फ चार लोग ही बचे थे। 1947 में बंटवारे के दो दिन बाद मिल्खा के गांव में दंगे हो गए। उनके पिता ने मिल्खा को मुल्तान भेजा, जहां उनके बड़े भाई माखन सिंह तैनात थे। माखन तीन दिन बाद कोट अड्डू अपनी यूनिट के साथ पहुंचा। लेकिन तब तक मिल्खा के माता-पिता और दो भाइयों को दंगाइयों ने मार डाला था।
मिल्खा ने कहा था, ‘‘मेरे पिता ने मुझे मदद लेने के लिए कहा और इसलिए मैं कोट अड्डू से मुल्तान के लिए ट्रेन में चढ़ गया। ट्रेन पहले की यात्रा से खून से भरी थी और मैं महिला डिब्बे में छिप गया और कुछ महिलाओं से दंगाइयों को न बताने का आग्रह किया। बाद में मैं अपने भाई की पत्नी के साथ एक सैन्य ट्रक में भारत के फिरोजपुर गया। वहां मैं पैसे कमाने के लिए सैनिकों के जूते पॉलिश करता था।’’
मिल्खा ने 1958 एशियाई खेलों में राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। उन्होंने 400 मीटर रेस में 47 सेंकड में ही स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। इसके बाद उनका दूसरा स्वर्ण ज्यादा खास था। मिल्खा ने 200 मीटर रेस में पाकिस्तान के स्टार धावक अब्दुल खालिद को शिकस्त दी थी। खालिद उस समय जबरदस्त फॉर्म में थे। उन्होंने 100 मीटर रेस को रिकॉर्ड समय में जीतकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। खालिद को एशिया का नंबर-1 धावक कहा जाता था।
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