मेकअप के बिना महिलाओं की खूबसूरती अधूरी है। लेकिन बीते कुछ सालों से कॉस्मैटिक में हानिकारक केमिकल और शोध में इनके स्वास्थ्य पर पडऩे वाले खतरनाक प्रभावों के सामने आने पर 'हैशटैग नो-मेकअप' ट्रेंड (#No-Makeup Trend) काफी लोकप्रिय हो रहा है। नो-मेकअप कॉन्सेप्ट के मुताबिक 'प्राकृतिक सुंदरता' को अपनाकर महिलाएं खुद को आजादी से जीने की स्वतंत्रता दे रही हैं। 2016 में सबसे पहले एलिशिया कीज ने 'हैशटैग नो-मेकअप' मुहिम की शुरुआत की। इसके बाद हॉलीवुड सेलिब्रिटी किम करदाशियां, ग्वेन्थ पैल्ट्रो ने नो मेक-अप सेल्फी की शुरुआत की। नो-मेकअप ट्रेंड को महिला सशक्तिकरण से जोड़कर इसलिए देखा जाता है क्योंकि यह उन्हें बेवजह सुंदर दिखने के सामाजिक दबाव से बचाता है। इस दबाव के चलते सभी एक जैसे मेकअप के तरीके अपनाने लगीं। चाहे वह उन्हें जंचें या नहीं। नतीजा मेकअप से पुते चेहरे चारों तरफ नजर आने लगे।
नो मेक अप में 25 मिनट लगते
पैटी कहती हैं कि उन्हें खुद अपना मेकअप करने में 15 मिनट लगते हैं। लेकिन नो-मेकअप के लिए 25 मिनट का समय लगता है। इतना ही नहीं नो-मेकअप के लिए एक बार में 350 डॉलर (25000 rupess) के उत्पाद उपयोग करने पड़ते हैं। चेहरे के दागों को छुपाने, कुछ हिस्सों को उभरने, पलकों, भौहों जैसे हिस्सों को दिखाने के लिए अतिरिक्त 20 मिनट और 15 उत्पादों एवं आधा दर्जन टूल्स का उपयोग करती हैं।
पसंद आया आइडिया
फैशन में भी 'हैशटैग नो-मेकअप' मुहिम का रंग चढ़ गया। 2017 के अंत तक मॉडल्स बिना मेकअप के रैम्प पर नजर आने लगीं। फैशन उद्योग में इस ट्रेंड को विक्टोरिया बैकहम, एलेक्जेंडर वान्ग बरबैरी, ईट्रो और कैल्विन क्लीन ने लोकप्रिय बनाया। ब्यूटी यू-ट्यूबर्स सोना गैसपैरियन और एमिली जीन जैसी सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर ने भी इसे युवाओं के बीच हिट करने में योगदान दिया। यह ट्रेंड 2020 में भी टिकटॉक पर छाया हुआ है। रहा और अब भी ट्रेंड में है। खासकर पान्डेमिक के समय परलौर्स से दूर रहने के लिए भी इस ट्रेंड को खूब वाइरल किया जा रहा है।
सुंदरता बनी व्यवसाय
बिना मेकअप के खूबसूरत दिखने में भी कम खर्च नहीं होता। यह ट्रेंड प्राकृतिक सौंदर्य के नाम पर उभरते कॉस्मेटिक ब्रांडों के लिए नया बाजार बन गया है। मारगोट रॉबी और प्रियंका चोपड़ा का मेकअप करने वाली पैटी डबरॉफ का कहना है कि नो-मेकअप ट्रेंड दरअसल महिला सशक्तिकरण का पुनरुत्थान है। हम पर जबरन सुंदर दिखने का दबाव बनाया गया है। इस दबाव ने महिलाओं से उनके नैसर्गिक सौंदर्य को छीन लिया था।
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