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वाइफ की डेथ के कारण इंडस्ट्री से साढ़े 4 साल दूर रहा, कमबैक आसान नहीं था -राहुल देव


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साल 2000 में 'चैम्पियन' फिल्म से सनी देओल के अपोजिट मुख्य विलेन की भूमिका निभाकर बॉलीवुड में 'बैडमैन' को एक नया चेहरा देने वाले एक्टर राहुल देव ने हिंदी के अलावा पंजाबी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम और भोजपुरी सिनेमा में भी काम किया है। ओटीटी पर स्ट्रीम हो रहे 'एलएसडी: लव, स्कैंडल और डॉक्टर्स' में वे डॉ. राणा के किरदार में हैं। साउथ इंडस्ट्री और बॉलीवुड में बराबर सक्रिय राहुल की जिंदगी कुछ साल पहले बेहद कठिन दौर से गुजरी है। कैंसर के कारण उनकी पत्नी का असमय निधन हो गया, इकलौते बेटे की परवरिश के लिए राहुल ने इंडस्ट्री छोड़ दी। जिंदगी में आए उतार-चढ़ाव, कॅरियर और आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में राहुल देव ने राजस्थान पत्रिका से बातचीत की।

वाइफ की डेथ के कारण इंडस्ट्री से साढ़े 4 साल दूर रहा, कमबैक आसान नहीं था -राहुल देव

ताना मिलता, 'Models Can't Act'
'मेरी अब तक की जर्नी को मैं एक ब्लेसिंग की तरह देखता हूं। कभी नहीं सोचा था कि इतना आगे आऊंगा। मॉडलिंग फील्ड से था इसलिए बहुत डिस्करेज किया जाता था। कास्टिंग डायरेक्टर्स बोलते थे कि आप लोगों का एक्सप्रेशन नहीं आता, 'मॉडल्स कांट एक्ट'। लेकिन ऊपर वाले और अपनी मेहनत पर भरोसा था। आज 100 से ज्यादा फिल्में कर ली हैं, कई अवॉर्ड भी जीत चुका हूं। लेकिन 2009 में पत्नी के निधन के बाद सबकुछ बदल गया। बेटा बहुत छोटा था, उस समय मैं एक साथ 12-13 फिल्में कर रहा था। ऐसे नाजुक हालात में बेटे को संभालना बहुत जरूरी था। साढ़े चार साल मैं फिल्मों से दूर रहा। अपनी फैमिली के पास दिल्ली शिफ्ट हो गया। वह मेरे लिए बहुत मुश्किल दौर था। लेकिन जिंदगी चलती रहती है।'

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2013 में बिग बॉस से की दोबारा वापसी
दिल्ली में रहने के दौरान 6 जिम बनाए लेकिन चले नहीं। तब मेरे गुरू ने कहा कि मुझे मुम्बई वापस जाना चाहिए। लेकिन इतने लंबे गैप के बाद वापस आना भी आसान नहीं था। उसी दौरान मुझे बिग बॉस के लिए कॉल आया और मैं जुड़ गया। किस्मत ने भी साथ दिया, बिग बॉस के बाद मुझे 'मुबारकां' मिली। फिल्मों में काम करने का अनुभव बहुत काम आया। इसके बाद 'तोरबाज', 'ऑपरेशन परिंदे', 'रात बाकी है', 'अनामिका' और एक हिस्टोरिकल ड्रामा में भी काम कर रहा हूं। ओटीटी सेंसरशिप पर बोले, 'मेरे खयाल में सेंसरशिप होनी चाहिए। यह जरूरी है, लेकिन हमें खुद के साथ भी ईमानदार रहना होगा कि हम क्या देखें और क्या नहीं। यह संस्कार और अनुशासन हमें घर से मिलतें हैं। मेरे डैड, मेरे सबसे बड़े हीरो हैं। बीते साल 91 साल की उम्र में उनका निधन हुआ लेकिन वे 81 साल की उम्र तक काम करते रहे। उन्हें दो गैलेंट्री आवॉर्ड भी मिले हैं।'

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