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अमिताभ और दिलीप कुमार को पहली बार पर्दे पर साथ लाए थे रमेश सिप्पी

अमिताभ और दिलीप कुमार को पहली बार पर्दे पर साथ लाए थे रमेश सिप्पी

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भारतीय सिनेमा को निर्देशक रमेश सिप्पी ने कई लिजेंडरी फिल्में दी है मगर फिल्म ‘शोले’ से जो पहचान रमेश को मिली वह शायद ही किसी दूसरी फिल्म से मिली हो। शोले बॉलीवुड की सबसे लोकप्रिय फिल्मों में से एक है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस पीढ़ी के हैं, शोले के लिए प्यार सभी के बीच एकमत है। बता दें कि रमेश को उनके बेहतरीन फिल्म निर्देशन के लिए जाना जाता है। 23 जनवरी को रमेश अपना 73वां जन्मदिन मना रहे है।

रमेश सिप्पी का जन्म 23 जनवरी 1947 को हिंदी फिल्म उद्योग के सबसे सफल निर्देशकों में से जी.पी. सिप्पी के घर हुआ था। उनके पिता ने अपने करियर की पहली फिल्म सज़ा (1951) बनाई थी जब रमेश सिप्पी सिर्फ 6 साल के थे। यह उनका पहला मौका था जब उन्होंने किसी फिल्म के सेट का दौरा किया।

9 साल की उम्र में फिल्म डेब्यू

उन्होंने महज 9 साल की उम्र में फिल्म शहंशाह से बतौर बाल कलाकार फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश किया। साल 1953 में रिलीज हुई शहंशाह में रमेश ने अचला सचदेव के बेटे की भूमिका निभाई।
फिल्म निर्माण में आने से पहले, वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में बिजनेस की पढ़ाई करने चले गए। हालांकि, वह कोर्स पूरा नहीं कर सके और छह महीने के भीतर भारत लौट आए और अपने पिता के साथ फिल्म निर्माण में जुट गए।

कॅरियर की शुरुआत

अपने कॅरियर की शुरुआत में, वे बेवकोफ़ (1960) और भाई बहन (1969) जैसी फ़िल्मों में एक अभिनेता के रूप में दिखाई दिए। बाद में उन्होंने ‘जोहर महमहूद इन गोवा’ (1965) और मेरे सनम जैसी फिल्मों के लिए निर्देशन और प्रोडक्शन का काम किया।
अंदाज से की फिल्म निर्देशन की शुरुआत

सात वर्षों तक सहायक निर्देशक के रूप में काम करने के बाद, 1971 में, वह ‘अंदाज’ फिल्म से निर्देशन की दुनिया में उतरे। फिल्म में हेमा मालिनी राजेश खन्ना शम्मी कपूर अरुणा ईरानी और अन्य ने अभिनय किया। 1972 में, उन्होंने अपनी दूसरी फिल्म ‘सीता और गीता’ का निर्देशन किया जिसमें धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, कमल कपूर, मनोरमा ने अभिनय किया। यह वह फिल्म थी जिसके लिए हेमा मालिनी को अपने कॅरियर का एकमात्र फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।
फिल्मी सफर

1975 में उन्होंने ‘शोले’ फिल्म का निर्देशन किया और हिंदी फिल्म उद्योग की प्रतिष्ठित फिल्म बन गई। 1980 में उन्होंने अपनी एक और फ़िल्म ‘शान’ रिलीज़ की जो जेम्स बॉन्ड की फ़िल्मों से प्रेरित थी। 1982 में उन्होंने अपनी अगली फिल्म ‘शक्ति’ की। जिसमें पहली बार दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन को पर्दे पर साथ लेकर आए। व फिर, 1985 में, उन्होंने फिल्म ‘सागर’ का निर्देशन किया। यह फिल्म डिंपल कपाड़िया के लिए एक अच्छी कमबैक फिल्म साबित हुई।

उनकी तीन फिल्में ‘भृष्टाचार’ (1989), ‘अकायला (1991), और ज़माना दीवाना (1995) बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रहीं।जिसके कारण उन्होंने 2015 तक किसी भी फिल्म को निर्देशित नहीं किया। हालांकि उन्होंने 2003 में हिंदी फिल्म उद्योग में एक निर्माता के रूप में फिल्म ‘कुछ ना कहो’ के साथ वापसी की, जिसे उनके बेटे रोहन सिप्पी ने निर्देशित किया था।
लगभग दो दशक बाद साल 2014 के सितंबर में उन्होंने फिल्म शिमला मिर्ची से निर्देशन की दुनिया में वापसी की। इस फिल्म में हेमा मालिनी, राजकुमार राव, रकुल प्रीत सिंह और शक्ति कपूर ने अभिनय किया था।
पर्सनल लाइफ

रमेश सिप्पी की निजी जिंदगी पर नजर डाले तो साल 1991 में उन्होंने अभिनेत्री किरण जूनेजा से शादी रचाई थी। दोनों के दो बेटियां और एक बेटा है।

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