नमस्कार दोस्तो कैसे है आप, आज मैं उन अभिनय के हस्तियों के यादों का किस्सा बताऊंगी, वह किस्सा जो उन कलाकारों के लिए एक बहुत ही बुरे सपने जैसा ही होगा, चालीस पचास के जमाने कि नाईका औंर साठ, सत्तर के
दशक कि प्रसिद्ध चरीत्र अभिनेत्री ललिता पवार
जिन्होंने साठ के दशक मे अपनी अभिनय से चरित्र आर्टिस्ट का चेहरा बदल दिया, मां का किरदार हो या फिर खलनायिका, हर रोल उन्होंने बेखूबी निभाया, 1955 मे आई फिल्म श्री 420 मे केले वाली गंगा माई का ममता से भरा अभिनय, या फिर प्रोफेसर का नेगेटिव आंटी का जुल्मी पात्र हर रोल मे उन्होंने प्रेक्षकों का दिल जीत लिया था, जब वो निगेटिव या ग्रे शेड की भुमिका करती थी, तो उनके सशक्त अभिनय को लाजवाब बनाने मे एक और चीज का सहयोग था, औंर वो थी उनकी आंखें, जी जी आप सही बोले, हर अच्छा कलाकार आंखों से ही अभिनय करता है, लेकिन इनका ये किस्सा थोड़ा अलग है, इनकी एक आंख मे एक हादसे ने ऐसी हानी हो गई थी, और उस हादसे ने इनका करियर अलग ही लेवल पर चला गया, जब भी ललिता पवार जी को कोई भी पुछता, के आपकी आंख जनम से ऐसी हैं या कोई हादसा हुआ था, तो ललिता जी बताती थी ये छोटी आंख भागवान कि देन हैं,
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फिर वह बोलती थी, ऊपर वाले नहीं एक्टर भगवान कि देन हैं, मैं आपको पुरा वाकया बताती हूँ, हुआ यूं के फिल्म जंग ऐ आझादी मे एक ऐसा सीन था के भगवान दादा को ललिता पवार जी को जोर से थप्पड़ मारना था और भगवान दादा ने थोड़ा ज्यादा ही जोर से मार दिया, उनके हाथों से हादसा अनजाने में हुआ, लेकिन ललिता जी कि बायीं आंख बुरी तरह खराब हो गई औंर छोटी हो गई, इस वजह से इस खुबसूरत अभिनेत्री के चेहरे पर डाग सा लग गया, इस वजह से चेहरे पर तो असर हो गया, उसके साथ उनके मुख्य अभिनेत्री के करियर पर भी असर पड़ गया,
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लेकिन उन्होंने कभी उम्मीद नहीं हारी, उनको जब मुख्य अभिनेत्री कि भुमिकाऐ मिलनी बंद हो गई तो उन्होंने अपना रुख सहायक अभिनत्री औंर खलनायिका पर कर लिया, दोस्तों कहते हैं ना जब एक रस्ता बंद हो जाता है तो दुसरा खुल जाता हैं, ललिता जी के साथ भी वही हुआ ,जिस आंख कि वजह से उनका अभिनेत्री का करियर डुब गया था, वहीं उसी आंख कि वजह से उन्हें अलग अलग किरदार उनके दरवाजे पर दस्तक देने लगे, उन्हें नये नये किरदार करने का मौका मिला, वो किसी भी भुमिका मे टाईप कास्ट नहीं हुई, जितना हाथ ललिता जी के अभिनय का है उन्हें मशहूर बनाने मे उतना ही सहयोग उनके बायीं आंख का भी हैं,
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वो कमजोर हुई आंख ही उनके करियर कि पिलर बनी, तो दोस्तों ललिता पवार जी कि जिवनी से हमें बहुत कुछ सिखाने को मिलता है, जैसे पहली बात सिखाती हैं ये के उनके साथ इतना बडा हादसा हुआ लेकिन वो कभी हिम्मत हार कर नहीं बैठी, दुसरी बात जिस शख्स कि वजह से उनके साथ इतना बडा हादसा हुआ, फिर भी ललिता जी ने उन्हे माफ कर दिया, और अंतिम बात उन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाया, जो शोहरत चली गई उसका गम मनाने से अच्छा जो उनके पास था उन्होंने उस चीज को स्वीकार किया, और उसका सोना कर के दिखाया और एक कामयाब औंर अच्छी इंसान बनी..
तो दोस्तों कैसे लगा मेरा ये आर्टिकल, मै ऐसे ही बेहतरीन औंर अच्छे सिख वाले सच्चे किस्से लेकर फिर आऊंगी, औंर मेरी आपसे एक दरख्वास्त है, अगर मेरी मेहनत आपको पंसद आये तो प्लिज एक लाईक कर दिजिये इससे मुझे प्रेरणा मिलती हैं..... धन्यवाद
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