29 दिसम्बर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना की फिल्मी दुनिया में प्रवेश एक टैलेंट हंट के जरिये हुयी थी। ।प्यार से लोग जिनहे “काका” कहकर बुलाते थे,असली नाम जतिन अरोरा था । यूं तो फिल्म “आखिरी खत” से ही उनके एक्टिंग की शुरुआत हो चुकी थी लेकिन उन्हे स्टार बनाने का काम फिल्म- “आराधना” ने किया। जबकि 1969-70 और बाद की आने वाली तमाम फिल्मों ने उन्हे बॉलीवुड का पहला सुपर स्टार बना दिया। 1969-72 के बीच उन्होने लगातार 15 सुपरहिट फ़िल्में- आराधना, इत्त्फ़ाक़, दो रास्ते, बंधन, डोली, सफ़र, खामोशी, कटी पतंग, आन मिलो सजना, द ट्रैन, आनन्द, सच्चा झूठा, दुश्मन, महबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी, दीं । उस दौर में राजेश खन्ना फिल्मों की सफलता की गारंटी बन गए थे।
1973 में राजेश खन्ना ने अचानक डिम्पल कपाड़िया से विवाह कर लिया, जबकि उस वक्त उनका अफेयर “अंजु महेंद्रु” से चल रहा था, अंजु उन्हे फिल्मों में आने के पहले से जानती थीं और संघर्ष के दिनों से ही उनके साथ रहती थीं । फिल्म – “बॉबी” की अपार सफलता और फिल्मी कैरियर की दीवानगी ने डिम्पल और राजेश के वैवाहिक जीवन में दरार पैदा की, पति-पत्नी दोनों 1984 में अलग हो गये। उसके बाद अभिनेत्री टीना मुनीम के साथ इनका रोमांस उनके विदेश चले जाने तक चला ।
1975 के आसपास आने वाली एक्शन फिल्मों ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी, अमिताभ बच्चन जैसे कई दूसरे एक्टर की फिल्में हिट होने लगीं । रोमांटिक फिल्में असफल होने लगीं । दौर और ट्रेंड बदल रहा था । जिन टॉप निर्माताओं के लिए राजेश खन्ना रीजर्व रहे उन्होने शर्त के मुताबिक दूसरे लोगों के साथ काम नहीं करने दिया और इस चक्कर में कई हिट फिल्में इनके हाथ से जाती रहीं । वर्षों तक सियासत में मसगुल रहने के बाद वहाँ से भी मोह भंग हो गया । अब तक राजेश खन्ना बड़े पर्दे और राजनीति दोनों से गायब हो चुके थे ।
आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो गयी थी की डेढ़ करोड़ रुपए की जो देनदारी आयकर विभाग ने उनके ऊपर गिराई थी उसे वे चुका भी नहीं पा रहे थे, जिस “आशीर्वाद” बंगले से राजेश खन्ना ने सफलता की सीढ़िया चढ़ीं थीं, उसे टैक्स नहीं चुका पाने के कारण “सील” कर दिया गया था, तब 2001 से 2008 तक उनके पास रहने के लिए उनका अपना बंगला तक नहीं था, मजबूरी में वे अपने ऑफिस में रहा करते थे । कुछ वक्त किराए के मकान में भी रहे । पत्नी डिम्पल, दोनों बेटियाँ और दामाद जैसे काफी पैसे वाले लोगों के रहते हुये भी डेढ़ करोड़ का टैक्स नही चुकाया जाना सोचने पर मजबूर करता है। एक समय में अपने स्टारडम से सूरज को भी मात देने और हमेशा फैंस से घिरे रहने वाले राजेश खन्ना बिल्कुल अकेले पड़ गए थे। बॉलीवुड में बिल्कुल काम नहीं मिलने की वजह से ही वे “वफा” जैसी फिल्म करने पर मजबूर रहे। शाहरुख खान, सलमान खान या अक्षय कुमार हों सभी हमेशा उन्हे सुपरस्टार मानते रहे पर किसी ने कोई काम नही दिया । यहाँ तक की बुढ़ापे वाले रोल भी। अक्षय कुमार की फिल्मों में भी जिनके निर्माता वे खुद होते थे, कभी काका को नहीं लिया गया। अक्षय अपनी फिल्मों में बड़े भाई या पिता के रोल के लिए अमिताभ या दूसरे कलाकारों को तो जगह देते रहे पर “काका” के मामले में उनका हिम्मत जवाब दे जाता था। हमेशा उनके साथ अछूत सा व्यवहार किया जाता रहा, वे काम करने को तरसते रहे, पर कोई उन्हे पुछने तक नहीं आया । इस उपेक्षित व्यवहार की टिश उन्हे मरते दम तक रही।
कभी गुलदस्तों और फूलों से उनका घर भर जाया करता था, सफ़ेद कार लिपिस्टिक के निशानों से गुलाबी हो जाया करते थे, …सब पीछे छुट गए। “राजेश खन्ना हेयर कट” की जगह अमिताभ कट ने ले ली। एक बार तो उनके जन्म दिन पर कोई बधाई, पत्र या गुलदस्ता तक नहीं आया तब शायद खन्ना साहब को एहसास हो गया की उनका बेहतरीन वक्त गुजर चुका है। जिस रुतबे में उनका कल गुजरा था उसी की तरफ की लालशा उनके जेहन मे हमेशा रही। लोग आयें, मिलें, उनकी बातें करें और उनके स्टारडम को महशुस करें ऐसा ही चाहते रहे राजेश खन्ना। अक्खड़पन मिजाज और गुस्सा उनकी सख्शियत का दूसरा पहलू रहा । कामयाबी के दोहरे नशे को वे शायद ठीक ढंग से हैंडल नही कर पाये । हालांकि आखिरी वक्त तक उन्होने काम या पैसों के लिए किसी के सामने हांथ नही फैलाया।
परिवार की बेरुखी, फिल्मों से दूरी और राजनीतिक नाकामी ने उन्हे शराब और सिगरेट का मरीज बना दिया। उन्हे कैंसर हो गया। 18 जुलाई 2012 को उनका देहांत हो गया ।
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