पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपना दमखम दिखाने वाली हमारे देश की वीरांगनाओं में शामिल एक नाम ‘गुंजन सक्सेना’ जिनके बारे में आज हर कोई जानना चाहता है। हाल ही में रीलीज़ हुई एक फिल्म ने इस नाम को ओर अधिक लाइम लाइट में लाने का काम किया है क्योंकि यह फिल्म गुंजन सक्सेना की जीवनी पर ही आधारित है।
जी हां, इनकी बहादुरी के अनेक किस्से हैं जिसकी वजह से उन्हें यह खास पहचान मिली। गुजंन सक्सेना हमारे देश की वायुसेना की पहली ऐसी महिला पायलट हैं जिन्होंने युद्ध में हिस्सा लिया। यही नहीं राज्य सरकारों के द्वारा युद्ध क्षेत्रों में अपनी वीरता के लिए उन्हें शौर्य वीर पुरस्कार, रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार जैसे अनेक सम्मानों से सम्मानित भी किया जा चुका है। वाकयी गुंजन सक्सेना ने अपनी वीरता से आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अदभुत शौर्य गाथा रच डाली है।
1994 में एयर फोर्स में भर्ती हुईं गुंजन सक्सेना
सिर के ऊपर खुला आसमान और इस आसामान को नापने का सपना तो बचपन में हममें से तो कइयों ने देखा होगा लेकिन इस सपने को हकीक़त में बदलने के लिए हर बाधा को पार करने वालों में नाम आता है वायु सेना की फ्लाइट लेफ्टिनेंट रिटायर्ड गुंजन सक्सेना का। पायलट बनने का सपना पूरा करने के लिए शॉर्ट सर्विस कमीशन के जरिये 1994 में एयर फोर्स में भर्ती हुई। अपने आपको हर स्तर पर साबित करते हुए गुंजन सक्सेना ने अपनी ट्रेनिंग पूरी की और उसके बाद उधमपुर में पहली पोस्टिंग हुई।
उधमपुर पोस्टिंग के 3 साल बाद गुंजन की जिंदगी में आया अहम क्षण
यहां से तकरीबन तीन साल बाद गुंजन सक्सेना की जिंदगी में एक अहम क्षण आया। उन्हें करगिल युद्ध में फ्रंट पर जाने के ऑर्डर मिले। दुश्मन की बम बारी के बीच से युद्ध क्षेत्र से घायल और मृत सैनिकों को वापस लाना, अग्रिम चौकियों तक जरूरी सामान पहुंचाना, युद्ध के दौरान दुश्मन की तैनाती और निगरानी संबंधी जानकारी लाने का ज़िम्मेदारी भरा काम मिला जिसे जोखिम उठाते हुए गुंजन सक्सेना ने बखूबी निभाया। पहली बार युद्ध की विभीषिका से गुंजन सक्सेना का सामना हुआ लेकिन बिना विचलित हुए उन्होंने अपने फर्ज को अंजाम दिया।
गुजंन सक्सेना बताती है कि उन्हें करगिल युद्ध के दौरान यह बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि उन्हें युद्ध भूमि पर भेजा जा सकता है। जिस समय कारिगल युद्ध हुआ था उस समय गुंजन सक्सेना के पास तीन साल का सर्विस एक्सपीरियंस था। उस समय गुंजन काफी जूनियर थी।
करगिल युद्ध के लिए छुट्टी हुई रद्द, बुलाया गया वापस
गुंजन सक्सेना बताती हैं कि जब वे छुट्टी पर लखनऊ में अपने घर आई हुई थी तो उन्हें उनके उधमपुर बेस से एक टेलीग्राम भेजा गया था। उसमें उनकी छुट्टियां रद्द किए जाने और तुरंत बेस पर पहुंचने का ऑर्डर था।
इसके फौरन बाद गुंजन सक्सेना अपने घर से रवाना होकर उधमपुर यूनिट पहुंची तो उनके फ्लाइट कमांडर ने उन्हें यह बात बताई कि यूनिट के कुछ एयरक्राफ़्ट और पायलट को श्रीनगर भेजा जा रहा है। वहां से करगिल में ऑपरेट करना होगा। गुंजन कहती हैं कि जब उन्हें यह बात पता चली तो उनके दिमाग में सबसे पहले खुशी का एक इमोशन जागा था। देश के लिए कुछ करने का मौका था।
गुंजन सक्सेना बताती हैं कि करगिल युद्ध के दौरान उनकी यूनिट का रोल घायल हुए भारतीय सैनिकों को युद्ध के मैदान से निकालकर वापस लाना, अग्रिम चौकियों तक जरूरी सामान पहुंचाना और दुश्मन की तैनाती और निगरानी संबंधी जानकारी लाना मुख्य काम था। इसके अलावा कम्यूनिकेशन सॉर्टीज जैसे किसी को कहीं जाना है या कहीं से किसी को लाना है यह कार्य भी किया जाता था।
दुश्मन की बम बारी के बीच भरी उड़ानें
गुंजन सक्सेना ने करगिल युद्ध के दौरान 20 दिन की तैनाती में लगभग 40 सामरिक उड़ानें भरी थी जिसमें उन्होंने बिना विचलित हुए अपने फर्ज को अंजाम दिया। ऐसा कर देश की इस पहली महिला पायलट ने पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की।
ऑपरेशनल रोल के लिए गुंजन सक्सेना की ट्रेनिंग ‘चेतक’ हेलीकॉप्टर पर हुई थी लेकिन जब गुंजन उधमपुर पहुंची तो वहां चेतक बहुत ज्यादा उपयोग नहीं किया जा सकता था क्योंकि वह पहाड़ी इलाक़ा है। वहीं करगिल युद्ध के दौरान गुंजन ने ‘चीता’ हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया था।
ऑपरेशनल रोल के लिए हुई डेढ़ साल की लगातार ट्रेनिंग
गुंजन बताती हैं कि उनकी ट्रेनिंग तकरीबन डेढ़ साल के लिए हुई थी और उनकी ट्रेनिंग बहुत मुश्किल भरी है। इस दौरान कई हादसे भी हो जाते हैं। यही सब कारण है कि मुश्किल से मुश्किल भरी परिस्थित में उन्हें टिके रहना पड़ता है।
गुंजन सक्सेना के बैच में कुल 6 फ्लाइंग ऑफिसर पास आउट हुई थीं। वायुसेना में महिला पायलेटों का यह चौथा बैच था।
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