बहुत कम लोग जानते है कि गुजरे जमाने की हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी अभिनय के साथ एक शायराना मिजाज भी रखती थी। हिंदी सिनेमा की ट्रेजडी क्वीन का खिताब पाने वाली अभिनेत्री मीना कुमारी असल जिंदगी में भी हमेशा ग़मों और तकलीफों से घिरी हुई रही।
सिनेमा के पर्दे पर जिस तरह से दुःख भरे किरदारों को दर्शकों के सामने पेश किया है, तो वहीँ अपनी निजी जिंदगी के दर्द का इजहार करने के लिए मीना कुमारी ने शायरी का सहारा लिया।
मीना कुमारी ने अपनी शायरी में जिंदगी की तन्हाईयों को बखूबी बयां किया है। उनकी मौत के बाद उनकी कुछ शायरी 'नाज' के नाम से छपी थी। मीना कुमारी की शायरी को गुलजार साहब ने 'तन्हा चांद' के नाम से संकलित किया है।
बेहतरीन उर्दू शायरी का फ़न रखने वाली मीना कुमारी के बारे में मशहूर संगीतकार नौशाद ने कहा था कि ' जाहिरी तौर पर उनकी शायरी में नाराज़गी नज़र आती है।'
१ अगस्त १९३२ को मुंबई में पैदा हुई मीना कुमारी ने चार साल की उम्र से ही परिवार की आर्थिक मदद के लिए एक बाल कलाकार के रूप में काम करना शुरू कर दिया था। जिसकी वजह से ठीक से पढ़ भी नहीं पायी।
आगे चलकर फिल्मों में शोहरत तो हासिल हुई, परिवार की तंगी दूर हुई मगर, वो खुद जिंदगीभर दुखों की गिरफ्त से निकल नहीं पायी। अपनी जिंदगी में वह जितनी कांटों और दर्द भरी राहों से गुजरीं उसे ही उन्होंने शायरी में ढाल दिया।
दुखों के साथ मीना कुमारी को 'इंसोम्निया' नामक बीमारी ने जकड लिया, जिससे उन्हें रातों को नींद नहीं आती थी। जिसकी वजह से वो नींद की गोलियां खाने लगी। उस समय डॉक्टर सईद तिमुरजा ने उन्हें नींद की गोलियों के बदले ब्रांडी पीने की सलाह दे दी।
इस दवा को जहर बनते देर ना लगी और देखते-देखते मीना कुमारी ने शराब पीना शुरू कर दिया। जिसके बाद उन्हें साल १९६८ में लीवर की बीमारी ने जकड़ लिया।
तमाम उम्र दुश्वारियों से पीछा छुड़ाने की नाकाम कोशिशों में लगी रही मीना कुमारी को आख़िरी समय में बीमारी ने घेर लिया। लीवर की बीमारी से लड़ते-लड़ते ३१ मार्च १९७२ को महज ३८ साल की उम्र में वो इस दुनिया को छोड़कर चली गयी।
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