हिंदी सिनेमा की शुरुआत से लेकर अब तक कोई परिवार अगर सिनेमा में सक्रिय रहा तो वह है कपूर खानदान. इस परिवार की सिनेमा में शुरुआत पृथ्वीराज कपूर से मानी जाती है जिन्हें 1972 में भारत सरकार ने दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया था. कपूर खानदान हर साल 3 नवंबर को पृथ्वीराज कपूर की जयंती बड़ी सादगी से मनाता है.
मौजूदा समय में कपूर खानदान के वारिस रणबीर कपूर है जिन्होंने बताया कि पृथ्वीराज जी के हाथों हमारे परिवार ने सिनेमा घुट्टी में पिया. उनके बताए रास्ते पर हमने कई पौध लगाए हैं. मेरा बहुत मन करता है कैमरे के पीछे जाने का और उनकी विरासत में एक नया पौधा लगाने का. मुझे इंतजार है किसी ऐसी स्क्रिप्ट का जो मुझे निर्देशक की जिम्मेदारी संभालने को मजबूर कर दे.
पृथ्वीराज जब 22 साल के थे तो 1928 में वह अपने रिश्तेदार से थोड़ा सा कर्ज लेकर फैसलाबाद से मुंबई आए. उन्होंने वकालत की पढ़ाई बीच में छोड़ दी और वह अभिनेता बने. उन्होंने भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा में काम किया. इससे पहले उन्होंने एक मूक फिल्म सिनेमा घर में भी काम किया था. महज 38 साल की उम्र में पृथ्वीराज कपूर ने समंदर किनारे एक आलीशान पृथ्वी थियेटर खड़ा किया.
एक बार शशि कपूर ने बताया था कि पृथ्वी थिएटर जनता की आवाज की प्रतिध्वनि है. मेरे पिता तब हर लेखक से बस यही कहते थे कि जो भी लिखो वह ऐसा लिखो कि उसमें आज का भारत दिखे. इसका दर्द दिखे. जब तक हम इस पर खुलकर बात नहीं करेंगे, इनका हल नहीं निकलेगा. बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि बंटवारे से 2 साल पहले पृथ्वीराज कपूर ने एक नाटक तैयार किया था जिसका नाम दीवार था. इस नाटक में वह सारी बातें बयां की गई थी, जो बंटवारे के बाद सबके सामने हकीकत बनकर आई.
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