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Box Office: इस सप्ताह रिलीज़ हुई हैं 3 फ़िल्में, जानिए किस फ़िल्म को मिले कैसे रिव्यूज़

Box Office: इस सप्ताह रिलीज़ हुई हैं 3 फ़िल्में, जानिए किस फ़िल्म को मिले कैसे रिव्यूज़

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एक नया शुक्रवार और इस दिन रिलीज़ हुई हैं 3 बहुचर्चित फ़िल्में। पहली है करण देओल और सहर बाम्बा स्टारर पल पल दिल के पास दूसरी है द ज़ोया फैक्टर जिसमें सोनम के साथ दिख रहे हैं साउथ सेंसेशन दुलकर सलमान और तीसरी है मल्टीस्टारर प्रस्थानाम। तीनो फ़िल्में अलग शैली की हैं कोई लव स्टोरी है तो कोई स्पोर्ट्स पर आधारित और कोई सीरियस पॉलिटिकल ड्रामा। आइये रिव्यू करते हैं फ़िल्मों को और जानने की कोशिश करते हैं कि फ़िल्म समीक्षकों की क्या राय है:-

1) पल पल दिल के पास

pal pal dil ke paas film review
निर्देशक के तौर पर यह सनी देओल की तीसरी फिल्म है इससे पहले सनी पाजी ने ये दिल्लगी और घायल रिटर्न्स जैसी फिल्मों का निर्देशन किया है। कहानी एक लव स्टोरी हैं जिसमें करण सहगल (करण देओल) एक पर्वतारोही है और सहर सेठी (सहर बाम्बा),दिल्ली स्थित एक वीडियो ब्लॉगर। सहर ट्रेकिंग के लिए मनाली गयी है ताकि वो ट्रेकिंग रूपी व्यवसाय, जो उसके अनुसार फ्रॉड है, का पर्दा फाश कर सके। वो करण से मिलती है शुरुआत में नोक झोंक होती है और वो वापस दिल्ली चली आती है।पहला हाफ फ़िल्म का थोड़ा बोरिंग है क्योंकि कहानी बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है। इंटरवल के बाद करण का किरदार दिल्ली जाता है क्योंकि मनाली में साथ रह कर करण और सहर दोनों एक दूसरे के प्रति आत्मीयता रखने लगे थे। यहाँ दिल्ली में सहर का एक बॉयफ्रेंड है जिससे वो ब्रेकअप कर चुकी है, वो एक प्रभावशाली पॉलिटिशियन का बेटा है और करण और सहर के बीच मुश्किलें खड़ी करता है।

कहानी में नया पन खास नहीं है। कॉमेडी सीन्स में फ़िल्म हंसा पाने में अक्षम है हालांकि एक्शन सीन्स में करण देओल अच्छे लगे हैं। सहर बाम्बा का काम बढ़िया है, वे अच्छी लगी है और इमोशनल सीन्स में खूब फ़बी हैं। ndtv ने जहां फ़िल्म को 1 स्टार दिए हैं वहीं इंडिया टुडे ने 2 स्टार और 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने 2.5 स्टार प्रदान किये हैं।

2) द जोया फैक्टर

the zoya factor review
हमारे देश में दो चीज़ें सबसे ज़्यादा प्रचलित हैं, एक क्रिकेट तो दूसरा अंधविश्वास और क्रिकेट का अंधविश्वास के साथ संगम को दर्शाती है 'तेरे बिन लादेन' फ़ेम अभिषेक शर्मा निर्देशित यह फ़िल्म। कहानी है एक जूनियर कॉपी राइटर ज़ोया की जो 26 जून 1983 को पैदा हुईं हैं, ठीक उस दिन जिस दिन कपिल देव की कप्तानी में इंडिया वर्ल्ड कप जीता था। ज़ोया किसी असाइनमेंट के लिए भारतीय क्रिकेट टीम से मिलती हैं और उस मुलाकात के बाद टीम एक के बाद एक मैच जीतने लगते हैं। टीम के सभी प्लेयर्स ज़ोया को लकी मानते हैं सिवाय टीम के कप्तान निखिल खोड़ा(दुलकर सलमान) के। निखिल का यह मानना है कि टीम अपनी मेहनत से हारती या जीतती है लक से नहीं। अन्त में क्या होता है निखिल सच्चे साबित होते हैं या ज़ोया सचमुच लकी हैं इसके लिए आपको फ़िल्म देखना होगा।

फ़िल्म एक स्पोर्ट्स कॉमेडी है और इस शैली की फिल्में भारत में अक्सर नहीं बनती हैं। फ़िल्म के कुछ सीन,खासकर जहां क्रिकेट मैच हो रहा है वो नकली लगते हैं। ज़ोया का किरदार खूबसूरत के मिली और आई हेट लव स्टोरी के सिमरन का मिश्रण लगता है। फ़िल्म में अगर कुछ प्लस पॉइन्ट है तो वो है दुलकर सलमान का अभिनय और स्क्रीन प्रेजेंस। इंडिया टुडे ने इस फ़िल्म को 2.5 स्टार दिए हैं तो टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने 3.5 स्टार, वहीं ndtv ने 2 स्टार देकर नवाज़ा है।

3) प्रस्थानम

prasthanam review
2010 में आई तेलगू फिल्म प्रस्थानम का यह औपचारिक हिंदी रीमेक है। निर्देशक वही हैं जो तेलगू फिल्म के थे, देवा कट्टा हालांकि स्टोरी में कुछ बदलाव फ़रहाद सामजी द्वारा किए गए हैं। यह फ़िल्म एक मल्टीस्टारर पॉलिटिकल ड्रामा है, इस कहानी में MLA बलदेव प्रताप सिंह का किरदार संजय दत्त ने निभाया है, उनकी पत्नी के रूप में दिखाई दी हैं मनीषा कोइराला जिनके किरदार का नाम सरोज है। बलदेव प्रताप सिंह के 2 बेटे हैं आयुष (अली फ़ज़ल), विवान (सत्यजीत दुबे) और 1 बेटी है पलक ( चाहत खन्ना)। चंकी पांडे बाजवा खत्री के किरदार में दिखे हैं और उनकी भूमिका नकारात्मक है। फ़िल्म में देखा जाए तो कुछ नयापन नहीं है, पिता एक रसूखदार MLA है जिसका एक बेटा लायक है और दूसरा नालायक। बलदेव प्रताप सिंह अमीनाबाद से 4 बार विधायक रह चुके हैं और पांचवां चुनाव लड़ने जा रहे हैं। आयुष बलदेव सिंह का सौतेला बेटा है हालांकि सुलझा हुआ और बेहद परिपक्व है वहीं विवान एक बिगड़ा शाहज़ादा है। धोखे,लालच और राजनैतिक विरासत पर आधारित यह फ़िल्म काफी अच्छी हो सकती थी।

फ़िल्म में अली फ़ज़ल का अभिनय बेहतरीन है हालांकि उनका लव एंगल, अमायरा दस्तूर के साथ फ़िल्म की गति को धीमा करता है। जैकी श्रॉफ़ फ़िल्म में ज़ाया हुए हैं, संजय दत्त किरदार में जज़्ब नहीं हुए। वे विधायक बलदेव सिंह कम संजू बाबा ज़्यादा लग रहे हैं। मनीषा कोइराला का काम कम है पर उनका स्क्रीन प्रेजेंस लाजवाब है। फ़िल्म कई जगह सरकार और राजनीति नामक फ़िल्म का भी मिश्रण लगती है। बहरहाल इंडिया टीवी ने इसे 2 स्टार दिए हैं जबकि टाइम्स ऑफ़ इंडिया और नवभारत टाइम्स ने 3 स्टार दिए हैं।

दोस्तों कमेन्ट के जररीये जर्रूर बताएं की आप कौन सी फिल्म देखने का प्लान बना रहे है. या आप अगले सप्ताह रिलीज़ होने वाले फिल्मों का करेंगे इंतज़ार।

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